रक्षाबंधन: प्रेम, शुद्धता और संरक्षण का पवित्र बंधन
रक्षाबंधन कोई साधारण रस्म नहीं, बल्कि वो परंपरा है जो रिश्तों को सिर्फ धागों से नहीं, बल्कि आत्मा से बाँधती है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रेम, समर्पण और शुद्धता के सूत्र में पिरोता है और यह बंधन युगों तक साथ चलता है।
रक्षाबंधन क्या है?
‘रक्षाबंधन’ यानी संरक्षण का बंधन । श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व, भाई-बहन के रिश्ते की सुंदरता का उत्सव है। लेकिन इसका अर्थ केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं है — यह उस हर रिश्ते को सम्मान देता है जहाँ कोई किसी की रक्षा और उन्नति का संकल्प लेता है।
वैदिक मूल: जब राखी सिर्फ धागा नहीं, रक्षा-सूत्र था
रक्षाबंधन की जड़ें प्राचीन वैदिक यज्ञों से जुड़ी हैं, जहाँ ‘रक्षा-सूत्र’ बांधने की परंपरा थी। यह सूत्र किसी प्रिय को बुरी शक्तियों और आपदाओं से बचाने के लिए मन्त्रों के साथ बाँधा जाता था।
अथर्ववेद का रक्षा-सूत्र मंत्र कहता है —
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
“जिस सूत्र से बलशाली असुरराज बली को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ — अचल और अडिग रक्षा के लिए।”
यह सिर्फ एक धागा नहीं था, बल्कि एक आध्यात्मिक कवच था — पवित्रता, कर्तव्य और विश्वास का प्रतीक।
पौराणिक कथाएँ जो रक्षाबंधन को दिव्यता से जोड़ती हैं
रक्षाबंधन से जुड़ी अनेक पवित्र कथाएं हमारे ग्रंथों में मिलती हैं:
· द्रौपदी और कृष्ण – जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली से बहते रक्त को अपनी साड़ी से बाँधा, तब कृष्ण ने आजीवन उसकी रक्षा का वचन दिया।
· लक्ष्मी और राजा बली – जब माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बाँधी, तो उसने भगवान विष्णु को उनके लोक में लौटने की अनुमति दी।
· यम और यमुना – यमराज ने अपनी बहन यमुना से राखी बंधवाने पर उसे अमरता का वरदान दिया।

ये सिर्फ कहानियाँ नहीं — ये हमारे सांस्कृतिक मूल्य हैं, जो बताते हैं कि रक्षा, स्नेह और आस्था कालातीत होते हैं।
आज का रक्षाबंधन: रिश्तों की नयी परिभाषा
आज के समय में, जब जीवन तेज़ है और संबंध अक्सर वर्चुअल हो जाते हैं — रक्षाबंधन एक ठहराव देता है। यह दिन याद दिलाता है कि रिश्ते भावनाओं से बनते हैं, सिर्फ खून से नहीं।
· बहनें बहनों को राखी बाँधती हैं,
· दोस्त एक-दूसरे को राखी बाँधते हैं,
· और कई लोग सैनिकों, गुरुओं, या मार्गदर्शकों को भी राखी बाँधते हैं।
क्योंकि रक्षा और आभार जताने के लिए रिश्ते का नाम जरूरी नहीं — भावना ही काफी है।
“दीर्घायुष्यम् समृद्धिं च बलं वीर्यं च ते भुवत्।
सदा रक्षां मया दत्तां भव बन्धो जयप्रदः॥“
अर्थ: हे प्रिय बंधु! तुम्हें दीर्घायु, समृद्धि, बल, और विजय प्राप्त हो। यह मेरी दी हुई रक्षा-सूत्र सदा तुम्हारी रक्षा करे।

रक्षाबंधन की विधि: एक पवित्र और पारिवारिक उत्सव
यह केवल राखी बाँधने का क्षण नहीं, बल्कि पूरे दिन की एक पवित्र प्रक्रिया है:
· प्रातः स्नान कर घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करें और पुष्प, धूप, दीप से सजाएँ।
· थाली में पुजाश्री शुद्ध तिलक किट (कुमकुम, अक्षत आदि) दीपक, कुमकुम, अक्षत (चावल), मिठाई और राखी रखें।
· भाई को तिलक लगाएँ, राखी बाँधें और मिठाई खिलाएँ।
· रक्षासूत्र मंत्र का जाप करें या चुपचाप उसकी रक्षा की प्रार्थना करें।
· परिवार के साथ आनंदमयी भोजन करें।
पुजाश्री का संदेश: आत्मा को समर्पित एक राखी
राखी सिर्फ कलाई पर बाँधा गया धागा नहीं, बल्कि हृदय से की गई एक प्रार्थना है। यह प्रेम, सुरक्षा और आत्मिक संबंधों की अभिव्यक्ति है। इस बार रक्षाबंधन पर एक ऐसी राखी बाँधें जो सिर्फ रिश्तों को नहीं, आत्मा को भी जोड़ दे।
निष्कर्ष: परंपरा से जुड़ी भावना
रक्षाबंधन सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एक संवेदनशील स्मरण है कि प्रेम हमें ढालता है,
पवित्रता हमें शक्ति देती है,और कुछ बंधन सदा के लिए होते हैं।
इस रक्षाबंधन, सिर्फ दीपक मत जलाइए — अपने अंतर्मन में भी एक ज्योति प्रज्वलित कीजिए।
एक ऐसी राखी बाँधिए जो पीढ़ियों का आशीर्वाद समेटे हो।